09 April 2025

चैत्र पूर्णिमा (Chaitra Purnima) जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

साल की पहली पूर्णिमा चैत्र पूर्णिमा, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पावन और विशेष दिन के रूप में मनाई जाती है। यह दिन न केवल चंद्रमा की पूर्णता का प्रतीक है, बल्कि इस दिन का आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यंत विशाल है। चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि का संबंध न केवल श्री हनुमान जन्मोत्सव से है, बल्कि यह दान, स्नान, जप और व्रत जैसे सभी पुण्य कर्मों की सिद्धि के लिए भी अत्यंत शुभ मानी जाती है। यह तिथि आत्मशुद्धि, साधना और ईश्वर भक्ति के लिए एक स्वर्णिम अवसर होती है।

 

चैत्र पूर्णिमा 2025 कब है?

इस वर्ष चैत्र पूर्णिमा की तिथि 12 अप्रैल को सुबह 3:21 बजे से शुरू होगी और यह 13 अप्रैल को सुबह 5:51 बजे तक प्रभावी रहेगी। उदयातिथि के नियम के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा का व्रत, स्नान और दान 12 अप्रैल को किया जाएगा।

 

चैत्र पूर्णिमा का पौराणिक महत्व

 

धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि चैत्र मास का संबंध ब्रह्मा जी से है। इसीलिए इस मास में किए गए सभी पुण्यकर्मों का फल कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। चैत्र मास की पूर्णिमा को श्री हनुमान जी का प्राकट्य दिवस भी मनाया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘हनुमान चालीसा’ में भी वर्ण आता है—

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।

श्री हनुमान जी कलियुग के जाग्रत देव हैं, और चैत्र पूर्णिमा का दिन उनके श्रीचरणों में भक्ति अर्पण का परम अवसर होता है।

इसके अतिरिक्त यह दिन भगवान विष्णु की पूजा, सत्यनारायण व्रत कथा और महालक्ष्मी पूजन के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है। देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए भक्तजन इस दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, सत्यनारायण भगवान की कथा पढ़ते हैं और रात्रि में दीपदान करते हैं।

 

चैत्र पूर्णिमा का महात्म्य

चैत्र पूर्णिमा को चंद्रमा अपने पूर्ण सौंदर्य में होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह दिन भगवान की उपासना और मानसिक शुद्धि के लिए अत्यंत फलदायी है। चंद्रमा हमारे मन, भावनाओं और चित्त का कारक है। अतः इस दिन चंद्रमा का पूजन करने से मानसिक संतुलन, प्रसन्नता और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इस दिन किए गए व्रत और तप विशेष फलदायी माने जाते हैं। सुबह सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदियों में स्नान करके व्रत का संकल्प लें। रात्रि को पूर्णिमा चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें।

स्कंद पुराण के अनुसार, “पूर्णिमा तिथि विशेषतः चैत्र मास की पूर्णिमा को किया गया पुण्यकर्म सौ यज्ञों के बराबर फल देता है।”

 

दान की महिमा

चैत्र पूर्णिमा पर विशेष रूप से दान करने की परंपरा है। इस दिन अन्न, भोजन आदि का दान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराना, कुओं या प्याऊ की व्यवस्था करना, या रोगियों की सेवा करना विशेष पुण्यदायी माना गया है।

 

धार्मिक मान्यता है कि—

दानं धर्मस्य लक्षणम्।

यानि दान धर्म का मुख्य लक्षण है। इसलिए चैत्र पूर्णिमा पर किया गया प्रत्येक दान आत्मा को शुद्ध करता है और ईश्वर की कृपा का द्वार खोलता है।

 

सनातन परंपरा के विभिन्न ग्रंथों में दान की महिमा का वर्णन मिलता है। शास्त्रों में कहा गया है-

अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते ।

जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते ॥

 

जमीन पर डाला हुआ छोटा सा वटवृक्ष का बीज, जैसे जल के योग से बढ़ता है, वैसे पुण्य रूपी वृक्ष भी दान से बढ़ता है।

 

हनुमान जन्मोत्सव

चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। इस कारण यह दिन हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भी श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। मंदिरों में हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, भजन संध्या, सुंदरकांड पाठ, और प्रसाद वितरण का आयोजन होता है। भक्तजन इस दिन व्रत रखते हैं, हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करते हैं, और उनके चरणों में अपनी समस्याओं, दुखों को अर्पित करते हैं। यह दिन न केवल भक्तों के लिए ऊर्जा और भक्ति से ओत-प्रोत होता है, बल्कि यह जीवन में कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा भी देता है।

चैत्र पूर्णिमा आत्मशुद्धि, परमात्मा से जुड़ाव और मानवीय सेवा का एक संकल्प है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जीवन में धर्म, दान और भक्ति ही सच्चे सुख और शांति के मार्ग हैं।

इस पावन अवसर पर ईश्वर भक्ति, आत्मनिरीक्षण और लोकसेवा को अपने जीवन में स्थान दें। जैसे चंद्रमा इस दिन पूर्ण होता है, वैसे ही हमारा मन भी भक्ति, करुणा और प्रकाश से पूर्ण हो जाए।