मार्गशीर्ष अमावस्या, हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखने वाला दिन है। यह दिन भगवान विष्णु की आराधना, आत्मशुद्धि और दान-पुण्य कार्यों के लिए समर्पित है। मार्गशीर्ष का महीना स्वयं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में वर्णित है। उन्होंने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश देते हुए कहा है, “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”, यानी मैं महीनों में मार्गशीर्ष हूं।
मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व
अमावस्या को नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। मार्गशीर्ष अमावस्या पर ध्यान, जप और तप के माध्यम से साधक ईश्वर के साथ गहन संबंध स्थापित कर सकते हैं। यह दिन आत्मचिंतन और अपनी गलतियों को सुधारने के लिए भी आदर्श है।
मार्गशीर्ष अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद शुभकारी माना जाता है। साथ ही इस दिन साधक सूर्य देव, भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन सच्चे मन के साथ उपासना करने से तथा पितरों का तर्पण, पिंडदान और दान-पुण्य जैसे अनुष्ठान करने से सभी दुख दूर होते हैं और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
ब्राह्मणों तथा दीन-दु:खीजनों को कराएं भोजन
मार्गशीर्ष अमावस्या पर ब्राह्मणों तथा दीन-दु:खीजनों को भोजन कराने से पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और अपने परिवार के लोगों को सुख-समृद्धि और निरोगी जीवन का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
सनातन परंपरा में दान का विशेष महत्व है श्रीमद् भगवद्गीता में के महत्व को बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा है-
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।
अर्थात् जो दान कर्तव्य समझकर, किसी फल की आशा के बिना, उचित काल तथा स्थान में और आध्यात्मिक कार्यों में लगे पात्र व्यक्ति को दिया जाता है वही दान सात्विक माना जाता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या के पुण्यकारी अवसर पर दीन-दु:खीजनों को भोजन कराने के प्रकल्प में सहयोग करके पुण्य के भागी बनें।
आपके द्वारा दिए गए दान से ब्राह्मणों तथा दीन-दु:खीजनों को भोजन कराया जाएगा