पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह एकादशी संतान प्राप्ति और उनके सुखद जीवन की कामना के लिए विशेष महत्व रखती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा और व्रत रखने से व्यक्ति को न केवल संतोष और शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पौष पुत्रदा एकादशी को आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना गया है। इस दिन व्रत और पूजन करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि इस एकादशी पर सेवा, परोपकार और जरूरतमंदों की मदद से जीवन को सफल और सार्थक बनाया जा सकता है।
श्रीमद्भागवत पुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति इस दिन दान और सेवा करता है, वह अपने सभी कर्तव्यों का सही प्रकार से पालन करता है और उसे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी न केवल व्रत और उपासना का पर्व है, बल्कि सेवा और परोपकार का भी दिन है। इस दिन असहाय, दिव्यांग और जरूरतमंद बच्चों को भोजन कराने से अद्वितीय पुण्य की प्राप्ति होती है। मनुस्मृति में कहा गया है-
तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते ।
द्वापरे यज्ञमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे ॥
अर्थात् सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान मनुष्य के कल्याण का साधन है।
पौष पुत्रदा एकादशी के शुभ अवसर पर दिव्यांग और असहाय बच्चों को भोजन दान कर पुण्य अर्जित करें। जरुरतमंद बच्चों के लिए भोजन का यह दान आपके जीवन में भी सुख, शांति और समृद्धि लाएगा।