महत्व मलमास का।
हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य धनु राशि में संक्रांति करते है तो यह समय शुभ नहीं माना जाता इसी कारण जब तब सूर्य मकर राशि में संक्रमित नही होते तब तक किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किये जाते। यह समय सौर पौष मास का होता है जिसे मलमास या खरमास भी कहा जाता है खरमास में खर का अर्थ ‘दुष्ट’ होता है और मास का अर्थ महीना होता है। इस महीने में सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा करना बहुत लाभदायक माना जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। खरमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।
मलमास 2022-23
साल में दो बार खरमास पड़ते हैं। पहला खरमास मीन संक्रांति पर पड़ता है और दूसरा धनु संक्रांति पर। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव 16 दिसंबर 2022 से 14 जनवरी 2023 तक धनु राशि में गोचरस्थ रहेंगे,15 जनवरी 2023 से राशि परिवर्तन कर मकर राशि में जाएंगे अर्थात मकर संक्रांति 15 जनवरी 2023 को नए भाव में बनेगी। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास समाप्त हो जाएगा और मांगलिक कार्यो पर लगा हुआ प्रतिबंध हट जाएगा।
मलमास में क्या करें।
शास्त्रों में बताया गया है कि इस माह में व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया, एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। इसलिए मलमास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य करना चाहिए ।
मलमास में क्या न करें।
हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार मलमास को मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है। इस मास में मुंडन, छेदन, विवाह, घर का निर्माण या गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। साथ ही इस माह में नया वाहन और नया व्यापार भी शुरू नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि इस महीने में शुरू किए गए नए कार्यों में सफलता नहीं मिलती है।
मलमास में दान से पुण्य की प्राप्ति।
दानशीलता भी सत्य धर्म है। रामचरितमानस में तुलसीदास कहते हैं कि परहित के समान कोई धर्म नहीं है।
सनातन परंपरा में दान करना बहुत पुण्यदायी कार्य माना गया है। दान-पुण्य करने से ना सिर्फ ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है बल्कि घर में सुख-शांति और बरकत भी आती है। असहाय एवं गरीबों की नित्यप्रति सहायता मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा कार्य है, जिसके द्वारा हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि समाज एवं प्राणीमात्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं। किंतु दान की महिमा तभी होती है जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाए। कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। एक परोपकारी व्यक्ति वह होता है जो अपना पैसा, अनुभव, समय, प्रतिभा या कौशल दूसरों की मदद करने और एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए दान करता है। सनातन धर्मावलम्बी वैसे तो नियमित रूप से दान करते हैं लेकिन श्राद्ध, संक्रांति, अमावस्या जैसे मौकों पर विशेषकर दान पुण्य किया जाता है। मलमास में दान-पुण्य करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान लाभ मिलता है।