हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि का विशेष धार्मिक महत्व है। यह दिन न केवल सत्यनारायण व्रत और पूजा के लिए शुभ माना जाता है, बल्कि सेवा, तप, ध्यान और दान के लिए भी सर्वोत्तम अवसर है। यह वही तिथि है जिस दिन हनुमान जी का जन्म हुआ माना जाता है, इसलिए इसे हनुमान जयंती के रूप में भी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
चैत्र पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों, संतों, निर्धनों तथा असहायों को दान देकर व्यक्ति अपने जीवन के पापों से मुक्ति पा सकता है। यह दिन आत्मिक शुद्धि और परोपकार की भावना को जाग्रत करने वाला दिन है।
चैत्र पूर्णिमा का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, पूर्णिमा तिथि को किया गया कोई भी पुण्यकर्म कई गुना फलदायक होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य, और भगवान विष्णु तथा हनुमान जी की उपासना करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति व समृद्धि आती है।
सत्यनारायण व्रत का विशेष महत्व इसी दिन जुड़ा है, जिसमें सच्चे मन से कथा श्रवण और प्रसाद वितरण करने से परिवार में मंगलकारी ऊर्जा का संचार होता है।
पूर्णिमा के पुण्यकारी अवसर पर दान देना अत्यंत शुभकारी माना जाता है। सनातन परंपरा के विभिन्न ग्रंथों में दान की महिमा का वर्णन मिलता है। शास्त्रों में कहा गया है-
अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते ।
जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते ॥
जमीन पर डाला हुआ छोटा सा वटवृक्ष का बीज, जैसे जल के योग से बढ़ता है, वैसे पुण्य रूपी वृक्ष भी दान से बढ़ता है।
दिव्यांगों और जरूरतमंदों को कराएं भोजन
चैत्र पूर्णिमा के दिन दीन-हीन, असहाय, दिव्यांग, जरूरतमंदों को भोजन कराना केवल पुण्य अर्जित करने का ही नहीं, बल्कि पितरों की आत्मा की शांति और ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का मार्ग है। यह कार्य आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने में सहायक होगा।