सावन पूर्णिमा सनातन परंपरा में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने तथा दीन-हीन, असहाय लोगों को दान देने से सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है, और साधक के सुखमय जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है।
श्रावण पूर्णिमा का महत्व
श्रावण पूर्णिमा का महत्व भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में समृद्धि, शांति, और आध्यात्मिकता के साथ जुड़ा हुआ है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा करता है और दीन-दु:खी, निर्धन लोगों को दान देता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही उसे जीवन के पापों और कष्टों से छुटकारा मिलता है।
दीन-दु:खी, निर्धन, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने हेतु सहयोग करें
पूर्णिमा के दिन सनातन परंपरा में ब्राह्मणों तथा पात्र लोगों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। श्रीमद् भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है-
“यज्ञदानतप: कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।”
अर्थात् यज्ञ, दान और तप ये कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं, इन्हें अवश्य करना चाहिए।
दान के महत्व का उल्लेख करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है-
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥
अर्थात् धर्म के चार चरण सत्य, दया, तप और दान प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलियुग में एक दान रूपी चरण ही प्रधान है। दान को किसी भी प्रकार से दिए जाने पर साधक का कल्याण ही होता है।
श्रावण पूर्णिमा के पुण्यकारी अवसर पर दान देकर नारायण सेवा संस्थान दीन-दु:खी, निर्धन, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने के प्रकल्प में सहयोग करके पुण्य के भागी बनें।
आपके दान से 50 जरूरतमंद, निर्धन और दिव्यांग लोगों को वर्ष में एक दिन आजीवन भोजन उपलब्ध कराया जाएगा।