मार्गशीर्ष पूर्णिमा: दान और पुण्य का पवित्र अवसर
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन धर्म और सेवा के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। हिंदू धर्म के शास्त्रों में इस तिथि का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और दान करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है, “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्” अर्थात महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। उन्होंने इस माह को उत्तम मास बताया है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन ईश्वर की कृपा प्राप्त करने और पापों से मुक्ति का अवसर है। इस दिन किए गए दान और सेवा कार्यों का फल कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। इसे “आनंद पूर्णिमा” भी कहा जाता है, क्योंकि यह आत्मिक संतोष और आनंद का मार्ग प्रशस्त करती है।
श्रीमद् भगवद गीता के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में की गई पूजा और दान-पुण्य का फल कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन दान, तप, और पूजा करने वाले लोगों को पूरे वर्ष के सभी पुण्य कर्मों के समान फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। यह दिन जीवन में संतुलन और समृद्धि लाने के लिए विशेष है।
दीन-दु:खी, निर्धन, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने हेतु सहयोग करें
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन धर्म, दान और सेवा का प्रतीक है। इस पवित्र अवसर पर किए गए दान से न केवल आत्मिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि यह समाज में वास्तविक परिवर्तन लाने का माध्यम भी बनता है।
पूर्णिमा के दिन सनातन परंपरा में ब्राह्मणों तथा पात्र लोगों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। दान के महत्व का उल्लेख करते हुए पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है-
अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते।
जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते॥
अर्थात:- जमीन पर डाला हुआ छोटा सा वटवृक्ष का बीज, जैसे जल के योग से बढ़ता है, वैसे पुण्य रूपी वृक्ष भी दान से बढ़ता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पुण्यकारी अवसर पर दान देकर वर्ष में एक बार दिव्यांग बच्चों को आजीवन भोजन कराने से सेवा प्रकल्प में सहयोग करके पुण्य के भागी बनें।