28 March 2025

कैसे शुरू हुआ नव संवत्सर? जानें इसका इतिहास

भारत के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास में नव संवत्सर का विशेष स्थान है। यह केवल एक नए वर्ष का आरंभ नहीं, बल्कि सृष्टि की उत्पत्ति, धर्म, आस्था और संस्कृति का संगम है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव संवत्सर का प्रारंभ होता है। इस दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, इसलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहा जाता है। यह दिन भारतीय कालगणना के आधार पर नए युग का आरंभ है, जिसे विक्रम संवत् और शक संवत् जैसे संवत्सरों के रूप में जाना जाता है।

 

विक्रम संवत् का इतिहास

भारत में प्रचलित नव संवत्सर का एक प्रमुख रूप विक्रम संवत्है, जो महाराजा विक्रमादित्य की विजयगाथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि ईसा पूर्व 57 में उज्जयिनी के महान शासक विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त कर एक नए युग की शुरुआत की। उनकी इस विजय की स्मृति में विक्रम संवत् का आरंभ किया गया। यह भारतीय परंपरा में गौरव और विजय का प्रतीक है, जो हमें हमारे स्वर्णिम अतीत की याद दिलाता है।

 

शक संवत् और इसका महत्व

विक्रम संवत् के अतिरिक्त एक और संवत्सर भी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसे शक संवत्कहा जाता है। इसकी शुरुआत 78 ईस्वी में हुई, जब सम्राट कनिष्क ने इसे प्रचलित किया। इसे भारत सरकार ने भी आधिकारिक पंचांग के रूप में स्वीकार किया है। यह संवत् हमें भारतीय गणितीय और खगोलशास्त्रीय परंपराओं की वैज्ञानिकता से जोड़ता है।

 

विक्रम संवत् 57 वर्ष आगे क्यों है?

गैग्रोरियन कैलेंडर से विक्रम संवत् 57 वर्ष आगे है। इसका कारण यह है कि विक्रम संवत की गणना महाराजा विक्रमादित्य की एक महत्वपूर्ण विजय के आधार पर की गई थी। इतिहास और परंपराओं के अनुसार, उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व में शकों को पराजित किया था और इस विजय की स्मृति में उन्होंने एक नए संवत्सर की शुरुआत की। इसीलिए विक्रम संवत की गणना 57 BCE से होती है, जिससे यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से हमेशा 57 वर्ष आगे रहता है। उदाहरण के लिए, यदि वर्तमान ग्रेगोरियन वर्ष 2025 है, तो विक्रम संवत 2082 होगा (2025 + 57 = 2082)।

 

नव संवत्सर और ब्रह्मांड की उत्पत्ति

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नव संवत्सर केवल एक नए वर्ष का आरंभ नहीं, बल्कि सृष्टि के सृजन का दिन भी है। इस दिन ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी और इसी कारण इसे ब्रह्म संवत् भी कहा जाता है। विक्रम संवत् को भारत के अलग अलग राज्यों में गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से मनाया जाता है। 

 

नव संवत्सर का धार्मिक महत्व

नव संवत्सर का शुभारंभ चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन से होता है, जो माँ दुर्गा की उपासना का विशेष समय है। इस दिन घरों में मंगल कलश स्थापित किया जाता है और माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही, यह ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है, जब प्रकृति नवजीवन से भर उठती है, वृक्षों पर नए पत्ते आते हैं और वातावरण में नवीन ऊर्जा का संचार होता है।

 

कैसे मनाएं नव संवत्सर?

इस दिन स्नान कर तिलक लगाना, नए वस्त्र धारण करना, मंदिरों में पूजा-अर्चना करना, पवित्र जल का छिड़काव करना और परिवार के साथ मिलकर उत्सव मनाना शुभ माना जाता है। साथ ही, घर में आम के पत्तों और तोरण से सजावट करना भी विशेष महत्व रखता है।

 

हिन्दू कैलेंडर में आने वाले 12 महीने 

हिंदू कैलेंडर में वर्ष को बारह महीनों में विभाजित किया गया है, जो चंद्र-सौर गणना पर आधारित होते हैं। यह बारह महीने क्रमशः चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष (अगहन), पौष, माघ और फाल्गुन कहलाते हैं। प्रत्येक माह का अपना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है, तथा इन महीनों में विभिन्न पर्व-त्यौहार मनाए जाते हैं। हिंदू पंचांग में महीनों की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है, जिसमें पूर्णिमा या अमावस्या के आधार पर महीनों की शुरुआत होती है। चैत्र माह से हिंदू नववर्ष का आरंभ होता है। 

 

यूनानियों ने की थी हिंदू कैलेंडर की नकल 

ऐसा माना जाता है कि यूनानियों ने हिंदू पंचांग की गणनाओं और अवधारणाओं को अपनाकर अपने कैलेंडर का निर्माण किया और फिर इसे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रसारित किया। भले ही आज वैश्विक स्तर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर का अधिक प्रचलन है, लेकिन भारतीय कैलेंडर की महत्ता आज भी अटूट बनी हुई है। भारत में धार्मिक पर्व-त्यौहार, उपवास, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त की गणना हिंदू पंचांग के अनुसार ही की जाती है। यह केवल एक समय मापने की पद्धति नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, ज्योतिष और धर्म से गहराई से जुड़ा हुआ है, जो सदियों से सनातन परंपराओं को दिशा देता आ रहा है।

 

संस्कृति और परंपरा से जुड़ाव

नव संवत्सर केवल एक तिथि नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, गौरव और सनातन परंपराओं का प्रतीक है। यह दिन हमें सिखाता है कि हर वर्ष की शुरुआत नए संकल्पों, नए जोश और नई ऊर्जा के साथ करनी चाहिए। यह पर्व आत्मशुद्धि और नए दृष्टिकोण के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

तो आइए, इस बार नव संवत्सर को हर्षोल्लास और आस्था के साथ मनाएं, अपने पूर्वजों की दी हुई महान धरोहर को अपनाएं और भारतीय संस्कृति की इस अमूल्य परंपरा को आगे बढ़ाएं!