खरमास भारतीय संस्कृति और परंपरा में एक महत्वपूर्ण अवधि है, जिसे हिंदू पंचांग में ‘अधिमास’ या ‘मलमास’ के नाम से भी जाना जाता है। यह अवधि साल में दो बार एक महीने के लिए आती है, जिसमें धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई विशेष नियमों का पालन किया जाता है। यह समय मुख्यतः सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने से मकर राशि में प्रवेश करने तक की अवधि होती है।
साल 2024 में 15 दिसम्बर से खरमास की शुरुआत हो रही है। भारतीय ज्योतिष परंपरा के अनुसार, जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं उसी दिन से इसकी शुरुआत मान ली जाती है। जब तक सूर्य देव धनु राशि में रहते है उस अवधि को खरमास कहा जाता है। सूर्य भगवान के धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास समाप्त हो जाता है।
खरमास में शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है लेकिन इस माह में दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि इस माह में दीन दु:खी और असहाय लोगों को दान करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सनातन परंपरा में नवग्रहों की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में दोष होता है उसके हिसाब से ग्रहों की शांति करवाई जाती है। जिस किसी भी जातक की कुंडली में पितृ दोष होता है, इस महीने में विशेष उपाय करके इसको दूर किया जा सकता है।
खरमास में क्या करें?
खरमास में कई लोग विशेष रूप से तीर्थ यात्रा, ध्यान और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं। इस समय का उद्देश्य यह होता है कि व्यक्ति अपने आत्मिक विकास के लिए प्रयासरत रहे और भगवान के प्रति श्रद्धा और विश्वास को और अधिक मजबूत करे।
इस अवधि में गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करना और दान देना बहुत पुण्यकारी माना जाता है। हिंदू धर्म में इस समय किए गए दान को विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। साधक भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान कर सकते हैं।
खरमास में क्या न करें?
कई कार्यों पर खरमास के दौरान रोक लगाई गई है। यह समय मुख्यतः आत्मा की शुद्धि और अध्यात्मिक उन्नति के लिए माना गया है, इसलिए सांसारिक या भौतिक कार्यों में कमी रखने का सुझाव दिया गया है।
खरमास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार और अन्य मांगलिक कार्य निषिद्ध माने गए हैं। माना जाता है कि इन कार्यों में किसी प्रकार की अनुकूलता नहीं होती और इसके परिणाम सकारात्मक नहीं रहते। खरमास में कोई नया व्यापार, गृह निर्माण या किसी नए कार्य का आरंभ करने से बचना चाहिए। इस समय को भगवान के प्रति समर्पित करने की परंपरा है ताकि जीवन में संतुलन और शांति बनी रहे।
भगवान शिव की आराधना
खरमास के दौरान भगवान शिव की पूजा करके जातक को पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके दौरान पवित्र नदियों में स्नान-दान और तर्पण का विशेष महत्व बताया जाता है। यह करने से सुख समृद्धि मिलती है और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पौराणिक मान्यताओं में भगवान शिव को पितृ प्रधान माना जाता है। जो भी इस माह में भगवान शिव की पूरे भक्ति भाव से पूजा करता है उसके ऊपर से पितृ दोष का प्रभाव कम होने लगता है। इस समय भगवान शिव की पूजा के दौरान बेलपत्र और शमी की पत्ती जरूर अर्पित करें।
खरमास में इन चीजों का करें दान
खरमास की अवधि में अनाज दान बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवधि में ब्राह्मणों तथा दीन-दु:खी, जरूरतमंदों को अन्न दान करने के साथ ही नारायण सेवा संस्थान के दीन-दु:खी, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने के प्रकल्प में सहयोग करें।
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न : साल 2024 में खरमास की अवधि क्या है?
उत्तर: साल 2024 का दूसरा खरमास 15 दिसम्बर 2024 से 14 जनवरी 2025 तक चलेगा।
प्रश्न: खरमास की अवधि किन देवताओं के लिए समर्पित है?
उत्तर: खरमास की अवधि सूर्य देव, भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
प्रश्न: खरमास में क्या न करें?
उत्तर: खरमास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार और अन्य मांगलिक कार्य न करें।
प्रश्न: खरमास में क्या करें?
उत्तर: खरमास में दान-पुण्य, तीर्थ यात्रा, पूजा, ध्यान और भजन-कीर्तन अवश्य करें।