साल 2024 में 15 दिसम्बर से खरमास की शुरुआत हो रही है। भारतीय ज्योतिष परंपरा के अनुसार, जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं उसी दिन से इसकी शुरुआत मान ली जाती है। जब तक सूर्य देव धनु राशि में रहते है उस अवधि को खरमास कहा जाता है। सूर्य भगवान के धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास समाप्त हो जाता है।
खरमास में शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है लेकिन इस माह में दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि इस माह में दीन दु:खी और असहाय लोगों को दान करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सनातन परंपरा में नवग्रहों की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि यदि किसी ब्यक्ति की कुंडली में दोष होता है उसके हिसाब से ग्रहों की शांति कारवाई जाती है। जिस किसी भी जातक की कुंडली में पितृ दोष होता है वह इस महीने में विशेष उपाय करके इसको दूर किया जा सकता है।
भगवान शिव की आराधना
खरमास के दौरान भगवान शिव की पूजा करके जातक को पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके दौरान पवित्र नदियों में स्नान-दान और तर्पण का विशेष महत्व बताया जाता है। यह करने से सुख समृद्धि मिलती है और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भगवान शिव को अर्पित करें ये चीजें
पौराणिक मान्यताओं में भगवान शिव को पितृ प्रधान माना जाता है। जो भी इस माह में भगवान शिव की पूरे भक्ति भाव से पूजा करता है उसके ऊपर से पितृ दोष का प्रभाव कम होने लगता है। इस समय भगवान शिव की पूजा के दौरान बेलपत्र और शमी की पत्ती जरूर अर्पित करें।
पितृ स्तोत्र का करें पाठ
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, खरमास के माह में पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है।
पितृ स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।