नियति का खेल भी अजीब है एक ही परिवार में पांच जनों की मौत होना परिवार पर मौत के तांडव के समान ही था।
जन्मजात नेत्रहीन पूना जब 6 माह का था तब बीमारी से पिता की मौत हो गई, तो 4 साल पहले अचानक मां को खून की उल्टियां होने से उसकी भी मौत हो गई। इससे भी अधिक दुख का पहाड़ तो तब टूट पड़ा जब एक सप्ताह बाद ही बड़ा भाई भी माँ की मौत के सदमे से चल बसा। वही भाभी की भी प्रसव के चार माह बाद कमजोरी के कारण मौत हो गई।
हृदय को द्रवित कर देने वाली यह करुण कहानी आदिवासी बहुल कोटड़ा तहसील की पंचायत उमरिया के लोहारी गांव के रहने वाले पूना (10) तराल की है जो जन्म से दृष्टि बाधित है। माता-पिता और भाई-भाभी की मौत के बाद दो भाई और 4 साल की चंद्रिका पुत्री नारायण और डेढ़ वर्षीय भूपेश का भी जब कोई सहारा नहीं रहा तो पड़ोसी दंपति ने इन्हें सहारा दिया। गांव की आशा सहयोगिनी लीला देवी ने इस परिवार की जानकारी संस्थान को पहुंचाई तो संस्थान साधक बच्चों को 27 अप्रैल उदयपुर ले आए और जिला बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष पेश कर इनकी चिकित्सीय जांचें करवाई। सीडब्ल्यूसी के आदेश पर पूना को संस्थान के आवासीय विद्यालय में आश्रय दिया गया।
संस्थान निदेशक वन्दना अग्रवाल की देखरेख में अलख नयन मंदिर नेत्र चिकित्सालय में डॉ. लक्ष्मण सिंह झाला के सानिध्य में पूना की सम्पूर्ण जांचे और उपचार हुआ। डॉ. झाला ने बताया कि बच्चा दोनों आँखों से जन्मांध, कुपोषण का शिकार और खून की कमी होने से ऑपरेशन के लिए फिट नहीं था। 1 माह की गहन चिकित्सकीय प्रकिया के बाद आँखों का 23 अप्रैल को पहला और 30 अप्रैल को दूसरा ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद बच्चे ने पहली बार दुनिया को देखा। रोशनी मिलने के बाद बालक ने संस्थान व चिकित्सकों का आभार जताया और कहा कि मैं सब कुछ देख पा रहा हूं। मैं अपने काम अब खुद ही कर सकूंगा। पूना बिल्कुल स्वस्थ है और संस्थान के आवासीय विद्यालय में रहकर पढ़ाई कर रहा है।