(उ.प्र.) उतरासोद गांव निवासी गब्बर और आशा देवी सवीता के जन्म से बहुत खुश थे। परन्तु 6 वर्ष की उम्र में यकायक कमर में एक छोटी गांठ उभरती देख चिंतित हो उठे। धीरे-धीरे गांठ बढ़ती जा रही थी। उपचार बहुत कराया परन्तु दिन-ब-दिन गांठ के बढ़ने से दर्द के मारे सिसक-सिसक कर रोती बेटी को माता-पिता उपचार हेतू कहां-कहां लेकर नही गए, किस तरह से दिन बीते, यह याद कर के बताना मुमकिन से परे है। निर्धनता के कारण कर्ज लेकर 8 साल पहले लखनऊ अस्पताल में आॅपरेशन करा गांठ निकलवाई। बेटी को दर्द से तो निजात मिली परन्तु आॅपरेशन के चार साल बाद बांए पांव की नशे ब्लाॅक हो जाने से चलने फिरने में अक्षमर्थ हो गई। डाॅक्टरों के अनुसार पांव को काटना ही एक विकल्प था आखिर गोरखपुर मेडिकल अस्पताल में पांव को कटवाना ही पड़ेगा। पांव कटने से पढ़ाई-लिखाई, सपने सब टुट गए।
इसी बीच परिचित ने हमें नारायण सेवा संस्थान के निःशुल्क सेवा शिविर के बारे में बताया और उम्मीद बंधाई कि बेटी चल पाएंगी। 30 सितंबर को गोरखपुर में आयोजित शिविर में आए। जहां बांए पांव का माप ले एक माह बाद 29 अक्टुम्बर को संस्थान की प्रोस्थेटिक टीम ने विशेष कृत्रिम पैर बनाकर पहनाया है।
माता-पिता बताते है कि सोचा नही था कि बेटी चल पाएंगी अब कृत्रिम पांव के सहारे आराम से चलने लग गई। अब अपने सपनों की ओर आगे बढे़गी।