भारत में त्यौहारों की एक अनूठी परंपरा है, और इन त्यौहारों में होली का स्थान सबसे निराला है। यह केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि हृदयों का मिलन और जीवन में उमंग भरने वाला पर्व है। जब गुलाल हवा में उड़ता है, तो ऐसा लगता है जैसे आसमान भी इस रंगीन उत्सव का हिस्सा बन गया हो।
होली 2025 कब है?
द्रिक पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 मार्च 2025 को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर होगी और अगले दिन 14 मार्च 2025 को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। भारत में उदयातिथि की मान्यता है ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, 14 मार्च को होली मनाई जाएगी और 13 मार्च की रात्रि को होलिका दहन किया जाएगा।
होली का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
होली की कहानी में भक्ति, विश्वास और अधर्म पर धर्म की विजय की गूंज सुनाई देती है। इसका सबसे प्रसिद्ध संदर्भ भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ा है। जब अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से रोकने के लिए अनेक प्रयास किए। लेकिन उसका कोई भी प्रयास सफल नहीं हुआ, तब अंत में उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि आग उसे जला नहीं सकती। लेकिन ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका भस्म हो गई। तभी से यह त्यौहार बुराई के अंत और अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से भी होली का गहरा संबंध है। कहते हैं कि कृष्ण अपने सखाओं और गोपियों संग रंगों की होली खेलते थे, जिससे यह उत्सव ब्रज में अत्यंत लोकप्रिय हो गया। आज भी बरसाने और वृंदावन की होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है, जहां प्रेम और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
होली के विविध रंग
भारत के अलग-अलग हिस्सों में होली मनाने की अपनी अनूठी परंपराएं हैं।
ब्रज और मथुरा की होली में राधा-कृष्ण के प्रेम का रंग घुला होता है, जहां बरसाने की लट्ठमार होली विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। साथ ही बंगाल में इसे डोल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जहां श्रद्धालु राधा-कृष्ण की मूर्तियों को पालकी में रखकर भजन-कीर्तन करते हैं। और एक दूसरे को बधाई देते हैं। उत्तर भारत में गुझिया, ठंडाई और भांग की मस्ती के बिना होली अधूरी मानी जाती है। बुंदेलखंड में होली के अवसर पर लोग फाग गाते हैं। राजस्थान की होली में शाही अंदाज देखने को मिलता है, जहां भव्य आयोजन किए जाते हैं। मणिपुर में इसे याओसांग पर्व के रूप में पांच दिनों तक मनाया जाता है।
होलिका दहन में भद्रा का साया
इस बार होलिका दहन के दौरान भद्रा का साया है। हर बार होलिका दहन में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है। मान्यता है कि भद्रा के साये में होलिका दहन करना अशुभ होता है। शास्त्रों के अनुसार भद्रा काल के दौरान किए गए शुभ कार्यों का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस कारण होलिका दहन का समय निर्धारित करने से पहले भद्रा समाप्त होने का इंतजार किया जाता है।
ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, भद्रा काल 13 मार्च 2025 को रात्रि 10 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगा। ऐसे में रात को 11 बजकर 26 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट तक होलिका दहन करना बेहद शुभ होगा। होलिका दहन के लिए यह शुभ अवधि 1 घण्टा 4 मिनट की होने वाली है।
होली की मस्ती में जिम्मेदारी न भूलें
रंगों की होली खेलें, लेकिन प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग करें ताकि किसी को नुकसान न पहुंचे। जल संरक्षण का ध्यान रखें और जरूरतमंदों को भी इस खुशी में शामिल करें। असली आनंद तभी आता है जब होली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि मानवता का संदेश बन जाए।
तो इस बार, होली को केवल एक त्यौहार की तरह नहीं, बल्कि जीवन के हर रंग को अपनाने के अवसर के रूप में मनाएं। अपने अंदर के सारे गिले शिकवों को मिटाकर, प्रेम और भाईचारे के रंग में रंग जाइए।