18 November 2023

इस दिन है देव उठनी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

देवउठनी एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन भगवान श्रीहरि अपनी योगनिद्रा से जागते हैं और संपूर्ण सृष्टि का संचालन करते हैं। भगवान नारायण के जागने के साथ ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। देवउठनी एकदशी को प्रबोधिनी एकादशी या ग्यारस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।

 

प्रबोधिनी एकदशी का शुभ मुहूर्त 

इस साल देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी। इस पर्व का शुभ मुहूर्त 22 नवंबर को रात 11 बजकर 3 मिनट पर ही शुरू हो जाएगा, जो 23 नवंबर को रात में 9 बजकर 1 पर मिनट पर समाप्त होगा। देवउठनी एकादशी का व्रत 23 नवंबर को ही रखा जाएगा; जबकि इसका पारण 24 नवंबर को प्रातः 6 बजे से 8 बजकर 13 मिनट तक किया जा सकेगा। 

 

पूजा विधि 

देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह शंख ध्वनि, घंटे और घड़ियाल बजाकर भगवान विष्णु को जगाया जाता है। इस दिन दिन हर किसी को अपने घर की सुबह-सुबह सफाई करना चाहिए। इसके बाद पूजा घर को स्वच्छ करके स्नान करना चाहिए। स्नान करने के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा घर में चौकी पर भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें और विधि विधान के साथ श्रीहरि की पूजा करें। भगवान नारायण को चंदन, हल्दी और कुमकुम लगाएं। पूजा के दौरान घी का दीपक जलाएं और प्रसाद चढ़ाएं। प्रसाद में तुलसी के पत्ते अवश्य डालें। पूजा के दौरान भगवान की कथा पढ़ें और अंत में आरती करें।

 

देवउठनी एकादशी पर तुलसी पूजा का महत्व 

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व होता है। देवउठनी एकादशी पर तुलसी के चारो ओर आटे और हल्दी से स्तंभ बनाकर उनकी पूजा की जाती है। भक्त लोग तुलसी की पूजा करते हुए गीत गाते हैं और परिक्रमा लगाते हैं। साथ सुखी और समृद्ध जीवन के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।   

 

देवउठनी एकादशी की कथा 

एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। आम लोगों के साथ नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी अन्य राज्य का व्यक्ति राजा के पास नौकरी मांगने आया। राजा उसे नौकरी पर रखने के लिए तैयार हो गए। लेकिन उन्होंने शर्त रख दी। राजा ने व्यक्ति से बताया कि तुम्हें प्रतिदन तो खाना दिया जाएगा लेकिन एकादशी के दिन खाना नहीं दिया जाएगा। इस पर व्यक्ति ने राजा की शर्त पर हामी भर दी। 

जब एकादशी आई तब उस व्यक्ति को फलहार का समान दिया गया। तो वह राजा के सामने जाकर बोला कि हे महाराज ! इस फलाहार से मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। कृपया मुझे अनाज दे दो। इस पर राजा ने उसे शर्त याद दिलाई। लेकिन वह अनाज का त्याग करने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब राजा ने उसे राशन दिया। वह यह राशन लेकर नदी के किनारे पहुंचा। वहां उसने भोजन पकाया। जब भोजन तैयार हो गया तो उसने भगवान को पुकारा। आओ भगवान भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ गए और उन्होंने उस व्यक्ति के साथ भोजन किया। भोजन करने के बाद भगवान अंतर्ध्यान हो गए और व्यक्ति अपने काम पर चला गया। 

अगली एकादशी के दिन एक बार फिर से वह व्यक्ति राजा के पास राशन लेने के लिए पहुंच गया। उसने राजा से कहा कि हे राजन! इस बार आप मुझे दुगुना राशन दीजिए। पिछली एकादशी को तो मैं भूखा रह गया। इस पर राजा ने उससे कारण पूछा। तब उसने बताया मेरे साथ भगवान भी खाना खाते हैं इसलिए ये राशन हम दोनों के लिए पूरा नहीं हुआ। 

यह बात सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ। राजा बोले कि मैं यह मान नहीं सकता कि भगवान तुम्हारे साथ भोजन करते हैं। मैं तो भगवान की इतनी भक्ति करता हूं लेकिन प्रभु ने आजतक मुझे दर्शन नहीं दिए। राजा की यह बात सुनकर वह व्यक्ति बोला कि हे महाराज! अगर आपको मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है तो आप खुद चलकर देख लीजिए। इस पर राजा उस व्यक्ति के साथ गए और पेड़ के पीछे छुपकर देखने लगे। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान नहीं आए। वह व्यक्ति परेशान हो गया। जब उसकी पूरी तरह से उम्मीद टूट गई तब उसने भगवान को पुकारते हुए कहा, “हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।”

लेकिन यह कहने पर भी भगवान नहीं आए। तब वह व्यक्ति प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। भगवान को जैसे ही लगा कि वह व्यक्ति अपनी बात पर अडिग है और वह प्राण त्याग देगा। तब भगवान वहां प्रकट हुए और उन्होंने उस व्यक्ति को प्राण त्यागने से रोक लिया। इसके बाद भगवान ने उस व्यक्ति के साथ बैठकर भोजन किया। खाना खाने के बाद वो उस व्यक्ति को विमान बैठाकर अपने धाम ले गए। तब राजा को एहसास हुआ कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इसके बाद राजा ने भी शुद्ध मन के साथ व्रत-उपवास करना शुरू किया और वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ।