06 January 2023

मकर संक्रांति का पावन त्यौहार

हिंदू केलेनंडर के अनुसार मकर संक्रांति का त्यौहार हर वर्ष परंपरागत रूप से 14 जनवरी को मनाई जाती है। हालांकि कई कारणों से तिथियों में उलटफेर के चलते इसमें कुछ परिवर्तन भी हुआ है। हिंदू धर्म में मकर संक्रान्ति के त्यौहार को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। पूरे भारतवर्ष में इस पर्व को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यूं तो इस पर्व को लेकर बातें कही जाती है। लेकिन धार्मिक, पौराणिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण से इसकी अलग अलग व्याख्या की जाती है। हर वर्ष पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। इस खास मौके पर जप, तप, श्राद्ध, तर्पण, स्नान और दान की मान्यता है।

 

मकर संक्रांति की पौराणिक मान्यताएं

श्रीमद्भागवत गीता एवं पुराणों के अनुसार इस खास अवसर पर सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में गोचर करते हैं। इसी उपलक्ष्य में यह त्यौहार प्रचलन में है। दरअसल मकर संक्रांति से ही ऋतु परिवर्तन का भी संकेत माना जाता है। इस विशेष अवसर पर की तरह के धार्मिक क्रियाकलापों का भी महत्व है।

पौराणिक कथाओं की मानें तो महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपना देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। ऐसी भी मान्यताएं हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थी।

दूसरे कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय इसी दिन हुई थी। जिसकी वजह से इस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन पृथ्वी पर असुरों का संहार हुआ तभी से भगवान विष्णु की जीत को मकर संक्रांति के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

 

दान का महत्व

देशभर के अलग-अलग हिस्सों में इस त्यौहार को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कहीं खिचड़ी कहीं उत्तरायण तो कहीं इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। मगर खास बात यह है कि इस मौके पर दान का विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस दिन गुड और तिल के दान का सेवन सबसे उत्तम माना जाता है। सूर्य की उपासना के साथ-साथ स्नान और दान का विशेष महत्व है। इसलिए दान-पुण्‍य के इस शुभ अवसर को गंवाए बिना आप भी अपनी क्षमता के अनुरूप कुछ न कुछ दान जरूर करे

ऋतु का महत्व

मकर संक्रांति केवल धार्मिक या पौराणिक मान्यताओं से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि इसका प्राकृतिक संबंध भी माना जाता है। जानकारों की मानें तो मकर संक्रांति में राशि परिवर्तन का प्रभाव ऋतु परिवर्तन पर भी पड़ता है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति से ही बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इसीलिए मकर संक्रांति को ऋतु परिवर्तन का संकेत भी माना जाता है।

दिन बड़ा रात छोटा

विशेषज्ञों की मानें तो सूर्य देव की स्थिति का प्रभाव धरती और बाकी के ग्रहों पर भी पड़ता है। जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध की ओर गमन करता है तो इसे दक्षिणायन और जब उत्तरी ध्रुव की ओर गमन करता है तो इसे उत्तरायण कहा जाता है। मकर संक्रांति के विशेष मौके पर सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर गमन करता है इसीलिए कई जगहों पर मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहा जाता है। इस दिन के बाद से ही दिन बड़ा और रात छोटा होने लगता है।

ग्रहों का राजा सूर्य

सूर्य को ग्रहों का राजा भी माना जाता है। ब्रह्मांड की सभी गतिविधियों पर सूर्य का प्रभाव पड़ता है इसीलिए सूर्य को विशेष महत्व दिया जाता है। ऐसे में विशेषज्ञों की राई में सूर्य के एक राशि से निकलकर दूसरे राशि में प्रवेश करने की प्रक्रिया ही संक्रांति कहलाती है। सनातन धर्म में ज्यादातर त्यौहार और व्रत चंद्रमा की तिथियों के अनुसार मनाया जाता है लेकिन संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जो सूर्य देव को केंद्र कर मनाया जाता है।

यूं तो साल में 12 संक्रांति होती है मगर इस सब में मकर संक्रांति को ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। राशि विशेषज्ञों के अनुसार सूर्य देव हर 30 दिन में राशि परिवर्तन करते हैं। इसीलिए साल में 12 संक्रांति का योग बनता है। ऐसे में सूर्य देव जिस राशि में प्रवेश करते हैं उसी राशि के नाम पर संक्रांति होती है। जैसे की मकर संक्रांति। मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान की आराधना की जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसे बड़ा ही शुभ दिन माना जाता है।

 

मकर संक्रांति का प्राकृतिक महत्व

मकर संक्रांति सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं बल्कि इसका प्राकृतिक चुनाव भी है। देश के कई हिस्सों में इस दिन नई फसल काटने की भी प्रथा है। बिहार, यूपी, पंजाब से लेकर तमिलनाडु जैसे राज्यों में इस दिन नई फसल काटी जाती है। नहीं नहीं इस त्यौहार के माध्यम से देशवासी किसान भाई बहनों को आभार भी प्रकट करते हैं। अनाज की पूजा के साथ साथ दही चुडा तिल खाने की भी परंपरा है इतना ही नहीं इस विशेष मौके पर पतंगबाजी भी की जाती है।

लोहड़ी

लकड़ी पंजाबी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। लोहड़ी का त्यौहार फसल की कटाई और नई फसल की बुवाई से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि लोहड़ी की आग में रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि अर्पित कर अग्निदेव और सूर्य देव का आभार प्रकट किया जाता है। साथ ही आने वाली फसल की अच्छी पैदावार की कामना भी की जाती है। इस तरह देश भर में मकर संक्रांति का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

पोंगल

मकर संक्रांति के खास मौके पर दक्षिण भारत के कई इलाकों में पोंगल मनाया जाता है। बताया जाता है कि इस त्यौहार के माध्यम से सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का स्वागत किया जाता है। तमिलनाडु आंध्र प्रदेश सहित कई इलाकों में यह त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सूर्य की आराधना के साथ-साथ अनाज और पशुओं की भी पूजा की जाती है। नई फसल की आगमन को केंद्र कर यहां खुशियां मनाई जाती है। इस मौके पर गीत संगीत का भी आयोजन किया जाता है। खासकर किसान समुदाय के लिए यह एक विशेष त्यौहार होता है लेकिन पूरे देश में इसे आनंद के साथ मनाया जाता है।

पोंगल का यह तीन दिवसीय त्यौहार समूचे दक्षिण भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। घरों को सजाना नए वस्त्र पहनना और एक दूसरे के साथ खुशियां बांटना इस पर्व की सबसे बड़ी क्रियाकलाप है।