15 April 2025

वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi): जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और दान का महत्व

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि अत्यंत पुण्यदायिनी मानी जाती है। प्रत्येक माह में दो एकादशियाँ आती हैं, जिनमें से वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। “वरुथिनी” का अर्थ होता है “रक्षा करने वाली”। अर्थात् यह एकादशी व्रत मनुष्य को जीवन की बाधाओं, पापों और संकटों से रक्षा करती है तथा दिव्य लोकों की प्राप्ति कराती है।

यह व्रत न केवल आत्मशुद्धि का साधन है, अपितु भगवान श्रीहरि की कृपा प्राप्त करने का सशक्त माध्यम भी है। इस एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

 

वरूथिनी एकादशी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त (Varuthini Ekadashi 2025 Date) & Muhurat

वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 अप्रैल को सायं 04:43 बजे से प्रारंभ होगी और अगले दिन, 24 अप्रैल को दोपहर 02:32 बजे समाप्त होगी। हिंदू धर्म में उदय तिथि का विशेष महत्व होने के कारण वरूथिनी एकादशी 24 अप्रैल को मनाई जाएगी।

 

वरुथिनी एकादशी का पौराणिक महत्व

एकादशी के व्रत का महत्व पुराणों में विस्तार से वर्णित है। कहा जाता है कि यह व्रत मनुष्य को इस लोक में सुख-संपत्ति और परलोक में मोक्ष प्रदान करता है। इस दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा की जाती है।

पद्म पुराण भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर के बीच बातचीत का उल्लेख है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं, “वरुथिनी एकादशी इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करने वाली है। वरूथिनी एकादशी के व्रत से सदा सुख का लाभ तथा पाप की हानि होती है। यह सबको भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है। वरूथिनी के व्रत से मनुष्य दस हजार वर्षो तक की तपस्या का फल प्राप्त कर लेता है।”

“वरुथिनी एकादशी की रात्रि में जागरण कर भगवान मधुसूदन की भक्ति में लीन होने से मनुष्य अपने समस्त पापों से छुटकारा पाकर परम पद की प्राप्ति करता है। प्रत्येक व्यक्ति को इस पवित्र और पाप-नाशक एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। इस व्रत की महिमा को पढ़ने या सुनने मात्र से भी पुण्यलाभ मिलता है। वरुथिनी एकादशी के विधि-विधान से अनुष्ठान करने पर मानव अपने पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त करता है।”

 

व्रत की विधि

वरुथिनी एकादशी का व्रत दशमी की रात से ही शुरू हो जाता है। इस दिन रात्रि में सात्त्विक भोजन करके भगवान का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें और श्रीहरि विष्णु की पूजा करें।

पूजा में तुलसी दल, पीले पुष्प, पंचामृत और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ विशेष फलदायी होता है। दिनभर व्रत रखकर प्रभु का स्मरण करें। रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन करना अत्यंत पुण्यदायक होता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोजन, वस्त्रदान और अन्नदान कर व्रत का पारण करना चाहिए।

 

दान की महिमा 

सनातन धर्म में दान को सर्वोच्च पुण्य कार्यों में गिना गया है। खासकर एकादशी के दिन किया गया दान अक्षय फल देने वाला होता है। वरुथिनी एकादशी पर दान करने से न केवल इस जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि अगले जन्मों में भी शुभ फल प्राप्त होते हैं। सनातन परंपरा के विभिन्न ग्रंथों में दान के महत्व को विस्तार से बताया गया है। दान के महत्व का उल्लेख करते हुए मनुस्मृति में कहा गया है-

 

तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते ।

द्वापरे यज्ञमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे ॥ 

अर्थात् सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान मनुष्य के कल्याण का साधन है।

 

एकादशी पर किया गया दान, हजारों वर्षों की तपस्या के बराबर फलदायी होता है। यह न केवल हमारे भीतर करुणा, दया और सहानुभूति के भावों को जागृत करता है, बल्कि समाज में भी संतुलन और समरसता का वातावरण निर्मित करता है।

 

वरुथिनी एकादशी पर करें ये दान 

सनातन परंपरा में अन्न और भोजन के दान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वरुथिनी एकादशी पर नारायण सेवा संस्थान के दीन-हीन, असहाय, दिव्यांग बच्चों को भोजन कराने के सेवा प्रकल्प में सहयोग करें। 

वरुथिनी एकादशी एक ऐसा पावन अवसर है, जब हम अपने जीवन में सेवा, संयम, भक्ति और दान के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं। यह व्रत हमें न केवल प्रभु श्रीहरि के प्रति समर्पण सिखाता है, बल्कि अपने आस-पास के जरूरतमंदों के प्रति संवेदनशीलता भी जगाता है।

इस दिन अगर हम तन, मन और धन से किसी दीन-हीन, असहाय, भूखे, पीड़ित या दिव्यांग की सेवा करें, तो यही हमारे जीवन की सबसे सच्ची साधना होगी।

 

जय श्री हरि!