विष्णु भगवान की उत्पत्ति कैसे हुई?
भगवान विष्णु सनातन धर्म में सबसे पवित्र देवताओं में से एक हैं। उनको नारायण और हरि के नाम से भी जाना जाता है। सनातन परंपरा में उन्हें इस जगत का पालनहार माना जाता है इसलिए उन्हें इस परंपरा में सर्वोच्च पद प्राप्त है।
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु को परमेश्वर के तीन प्रमुख स्वरूपों में से एक माना जाता है। पुराणों में त्रिमूर्ति भगवान विष्णु को इस जगत का स्वामी माना गया है। त्रिमूर्ति में दो अन्य भगवान ब्रह्मा और शिव भी आते हैं। जिनमें से भगवान ब्रह्मा को इस जगत का सृजनकर्ता माना गया है जबकि भगवान शिव को इस जगत का संहारक माना गया है।
भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जी को माना जाता है। इसलिए उन्हें ‘लक्ष्मीपति’ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा कहा जाता है कि तुलसी भी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं। इसलिए तुलसी इस जगत में ‘विष्णुप्रिया‘ के नाम से विख्यात हैं। भगवान विष्णु क्षीरसागर में निवास करते हैं जहां वह शेषनाग पर शयन की मुद्रा में विराजमान हैं। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी विराजमान हैं।
भगवान विष्णु चतुर्भुज हैं। उन्होंने अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म कमल धारण किया हुआ है। साथ ही अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा, ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र धारण किया हुआ है। गरुण को भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है।
ऋग्वेद में विष्णु
सनातन परंपरा के सबसे प्रमुख ग्रंथों में से एक ऋग्वेद में भगवान विष्णु का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में भगवान विष्णु के बारे में ज्यादा नहीं बताया गया है, उनका उल्लेख पाँच सूत्रों में आता है। लेकिन उनके महत्व के बारे में लिखा गया है। ऋग्वेद में उन्हें ‘बृहच्छरीर‘ (विशाल शरीर वाला), परम बलशाली, युवाकुमार आदि नामों से संबोधित किया गया है।
सर्जक-पालक-संहारक
सनातन धर्म में भगवान विष्णु को सर्जक-पालक-संहारक के रूप में जाना जाता है। वो इस सृष्टि के सृजनकर्ता है, साथ ही पालक भी है और संहारक भी हैं। इस प्रकार सभी के निर्माता वे ही हैं। भगवान विष्णु तीनों लोकों के अकेले धारक हैं।
सर्वोच्चता
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है इसलिए उन्हें ‘सुकृत्तरः‘ कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है ‘उत्तम फल प्रदान करने वालों में श्रेष्ठ‘। भगवान विष्णु के बारे में ऋग्वेद में कहा गया कि वे सम्पूर्ण विश्व को अकेले ही चला रहे हैं।
विष्णु के अवतार
भगवान विष्णु के अवतार का अर्थ है उनका इस मृत्यलोक में पुनः अवतरित होना। अवतार की सिद्धि दो दशाओं में मानी जाती है। पहले में अपने रूप का परित्याग कर किसी विशिष्ट कार्य के लिए नया रूप धारण करना। दूसरा है नया रूप धारण करके किसी सम्बद्ध रूप में आना।
अवतार के बारे में बताते हुए भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है तब-तब सज्जनों के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों में उत्पन्न होता हूँ।
भगवान विष्णु के अवतारों की संख्या
सनातन परंपरा में भगवान विष्णु के 10 अवतारों को माना जाता है, जो निम्नलिखित है-
मत्स्यावतार: भगवान विष्णु का पहला अवतार है, जिसमें वे मछली के रूप में पृथ्वी को प्रलय से बचाते हैं।
कूर्मावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु कछुआ के रूप में प्रकट होते हैं और समुद्र मंथन में देवताओं की सहायता करते हैं।
वराहावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु वराह के रूप में पृथ्वी को प्रलय से बचाते हैं।
नरसिंहावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु मानव-सिंह के रूप में प्रकट होते हैं और हिरण्यकश्यप का वध करके प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा करते हैं।
वामनावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु ब्राह्मण बालक के रूप में प्रकट होते हैं और बलि राजा को बौने ब्राह्मण के वेष में बलि के पास जाते हैं और उनसे अपने रहने के लिए तीन पग भूमि देने का आग्रह करते हैं। इस पर राजा बलि उन्हें तीनों लोक दान में दे देते हैं।
परशुरामावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु ब्राह्मण के रूप में प्रकट होते हैं। परशुराम अवतार को भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है। उन्हें भगवान शिव ने परशु नाम का अस्त्र दिया था, जिससे उन्हें परशुराम कहा गया। उन्होंने इस पृथ्वी पर कई शूरवीरों को शिक्षा दी। भीष्म पितामह और अंगराज कर्ण उनके शिष्य माने जाते हैं। भगवान परशुराम ने इस धरती पर अधर्म के विरुद्ध युद्ध करके धर्म की स्थापना करने का कार्य किया।
श्रीरामावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में प्रकट होते हैं और इस धरती पर राम राज्य की स्थापना करते हैं।
कृष्णावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में प्रकट होते हैं और मामा कंस जैसे राक्षसों का विनाश करते हैं। साथ ही इस पृथ्वी पर धर्म की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता ज्ञान देते हैं, युद्ध में पांडवों का साथ देते हैं।
बुद्धावतार: इस अवतार में भगवान विष्णु बुद्ध के रूप में प्रकट होते हैं और दुख से मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
कल्कि अवतार: यह अवतार भविष्य में होने वाला है, जिसमें भगवान विष्णु कलियुग के अंत में कल्कि नामक योद्धा के रूप में प्रकट होंगे और अधर्म का नाश करेंगे।