हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य देव मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस काल को मेष संक्रांति कहा जाता है। यह संक्रांति नवचेतना और नवसंकल्प का प्रतीक होती है। इस दिन सूर्य का नया गमन मार्ग प्रारंभ होता है, जो न केवल ऋतुओं के परिवर्तन का संकेत देता है, बल्कि शुभता और धार्मिक आस्था के नवसूर्य के उदय का भी प्रतीक बन जाता है।
यह पर्व विशेष रूप से खरमास के समापन और शुभ कार्यों के आरंभ से जुड़ा हुआ है। खरमास, जो एक माह तक सूर्य के धनु और मीन राशि में विचरण के समय चलता है, उस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों पर धार्मिक दृष्टिकोण से प्रतिबंध रहता है। जैसे ही सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, सभी मांगलिक कार्यों के द्वार पुनः खुल जाते हैं और सम्पूर्ण वातावरण एक नए उत्साह, उल्लास और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है।
कब है मेष संक्रांति 2025?
वैदिक पंचांग के अनुसार, आगामी 14 अप्रैल को मेष संक्रांति मनाई जाएगी। इस दिन पुण्य काल का समय सुबह 05:57 बजे से शुरू होकर दोपहर 12:22 बजे तक रहेगा। इसके अलावा, महा पुण्य काल सुबह 05:57 बजे से प्रारंभ होकर सुबह 08:05 बजे तक रहेगा।
धार्मिक महत्व
मेष संक्रांति का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों और धर्मशास्त्रों में विशेष महत्व के साथ किया गया है। इसे ‘सौर नववर्ष’ का प्रारंभ भी कहा जाता है। यह दिन सूर्योपासना, स्नान, दान और जप-तप के लिए अत्यंत पुण्यकारी होता है। इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि पवित्र नदियों में स्नान करने से जन्मों के पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
मान्यता है कि इस दिन से ही भगवान श्रीराम ने दक्षिण की ओर रावण पर विजय पाने की यात्रा का आरंभ किया था। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इसी दिन से भगवान विष्णु का आराधना काल पुनः आरंभ होता है।
आध्यात्मिक भाव
मेष संक्रांति खगोलीय परिवर्तन के साथ हमारे भीतर के भगवान सूर्य को जागृत करने का भी पर्व है। जैसे सूर्य देव अपने मार्ग पर आगे बढ़ते हैं और अंधकार पर प्रकाश की विजय होती है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन के अंधेरे को मिटाकर ज्ञान, सेवा और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए। यह संक्रांति हमारे मन में नयापन लाती है, पुराने विकारों से मुक्ति और नए सत्कर्मों की प्रेरणा देती है।
संक्रांति के दिन सूर्य देव को जल अर्पित करना, दीपक जलाना, तुलसी के समीप दीपक रखकर आरती करना और भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। यह दिन ‘अन्नदान’, ‘वस्त्रदान’, ‘गौदान’, और ‘स्वर्णदान’ के लिए भी परम शुभ है।
यह काल ‘सूर्य दक्षिणायन’ से ‘उत्तरायण’ की ओर गति का सूचक है, जब देवताओं की ऊर्जा पृथ्वी पर विशेष रूप से सक्रिय होती है। गांवों और नगरों में मेष संक्रांति पर मेले, कथा-प्रवचन, हवन-यज्ञ, भागवत पाठ, रुद्राभिषेक जैसे आयोजन होते हैं। लोग नए वस्त्र धारण कर के मंदिरों में जाकर सूर्य देव और विष्णु भगवान का पूजन करते हैं और अपने जीवन में शुभता की कामना करते हैं।
लोकपर्व और परंपराएं
भारत के विभिन्न राज्यों में मेष संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पंजाब में इसे बैसाखी, केरल में विशु, तमिलनाडु में पुथांडु, ओडिशा में पणा संक्रांति, असम में बिहू, पश्चिम बंगाल में पोइला बोइशाख और नेपाल में नेपाली नववर्ष के रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह विविधता हमारी सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक एकता का प्रतीक है।
इस दिन सत्तू, ककड़ी, गुड़, जल, मटका और पंखा दान करने की परंपरा है। यह पर्व गर्मी के आगमन और शरीर की ठंडक बनाए रखने की तैयारी का प्रतीक है। यह दिन दान-पुण्य के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।
मेष संक्रांति हमारे जीवन में शुभता, पवित्रता और सद्भाव का प्रकाश फैलाने वाला दिन है। यह हमारे भीतर नई प्रेरणा और आशा का संचार करता है, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, निष्क्रियता से कर्म की ओर, और अहंकार से भक्ति की ओर ले जाता है।
इस पुण्य अवसर पर सभी को अपने भीतर के अज्ञान और आलस्य को त्यागकर, सत्कर्मों और सेवा के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए। आइए, इस मेष संक्रांति पर हम सब संकल्प लें— सूर्य देव की भांति जीवन में उजाला फैलाने का, भगवान विष्णु की तरह धर्म की रक्षा करने का, और मानवता की सेवा में स्वयं को समर्पित करने का।
ऊँ सूर्याय नमः।
शुभ मेष संक्रांति।